कवितालयबद्ध कविता
प्रतियोगिता आयोजन
विषय: #बारिश वाला प्यार
शीर्षक: मुहब्बत का मकां
कैसी उसने ये ख़ुद में
गुस्ताख़ी भर ली,
उसने बारिश वाले प्यार से
दोस्ती कर ली....
मायूस हुआ दिल जब जाना की
कच्चा था उसके मुहब्बत का मकां ,
पर दिल कहाँ मानता है
वो तो था नादां....
उसने ये हिमाक़त
फ़िर भी कर ली,
उसने बारिश वाले प्यार से
दोस्ती कर ली....
यकीं था उसे ख़ुद पर
इबादत और मुहब्बत की तपन
इस मकां को कर देगी मज़बूत ,
पर वो क़तरा क़तरा
राख होती गई
उसका उसमें कुछ भी
रहा न साबूत ...
अब वो राख की
बुत बन गई है पत्थर सी ,
चुभती है वही बूंदे
अब उसे नश्तर सी....
वो फिर भी झमाझम बारिश में
भीग जाना चाहती है....
आज अपने आंसुओं को बिना छुपाए
बहाना चाहती है....
कंचन मिश्रा की कलम से ✍️✍️
स्वरचित
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