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ब्याह ऐसा भज - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

ब्याह ऐसा भज

  • 130
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" ब्याह ऐसा भी "

दिव्यांशी को दुल्हन- श्रृंगार में विवाह हेतु मंदिर लाया गया।बस दूल्हे का इंतजार है। भोली बालिका नृत्य करती झूम रही है,ढोल की थाप पे । " अरे दूल्हे प्रभु आ गए। " ध्वनि के साथ घूघट में ही विवाह संपन्न।
दूल्हे के स्थान पर मंदिर की मूर्ति देख वह पूछना चाहती है। "आज से तुम देव
दासी,,,,।" पुजारी बोले।
सरला मेहता

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