कहानीलघुकथा
" ब्याह ऐसा भी "
दिव्यांशी को दुल्हन- श्रृंगार में विवाह हेतु मंदिर लाया गया।बस दूल्हे का इंतजार है। भोली बालिका नृत्य करती झूम रही है,ढोल की थाप पे । " अरे दूल्हे प्रभु आ गए। " ध्वनि के साथ घूघट में ही विवाह संपन्न।
दूल्हे के स्थान पर मंदिर की मूर्ति देख वह पूछना चाहती है। "आज से तुम देव
दासी,,,,।" पुजारी बोले।
सरला मेहता