कविताअन्य
वो तपती धरती पर,
पहली बारिश की बूंदों का पड़ना ।
वो पानी के बुलबुलों का,
बनकर फिर गुब्बारों सा फूटना ।
दुल्हन सी सजी धरती पर,
पक्षियों का गुंजन गान करना ।
और इस सब के बीच,
उसकी खिलखिलाती मोहक हँसी ।
वो अप्सराओं सी सुन्दर,
फूलों सी कोमल,
मृगनयनी, गजगामिनी ।
भीगती बारिश में,
बेफिक्र, बेपरवाह सी नाचती ।
अपने में मस्त वो,
कभी गुनगुनाती, कभी शरमाती ।
मंत्रमुग्ध सा मैं उसे,
यूँ निहारता रह गया ।
और वो बन बैठी ,
मेरे मन मस्तिष्क की स्वामिनी ।
आज भी याद आता है मुझे,
मेरा वो पहला प्यार,
वो दिल को छू जाने वाला प्यार ,
वो बारिश वाला प्यार ।।
© रुचि शर्मा
09-Aug-2020