कहानीलघुकथा
ठिठुरन
ठेले पर सब्जियाँ बेचने वाला ठिठरु एक थैला पटकते बड़बड़ाता है, "रनिया, ज़रा चाय तो सुड़का दे। मुझे ये ठंड इतनी क्यों लगती है ? हूँ बापू ने नाम ही,,,,।"
रनिया थैले से पुराने कम्बल निकाल खुश हो गई," भला करे भगवान,
तीन पुरानी सतरंजियां ही ओढ़ने बिछाने के काम आती है। क्यों जी, एक कम्बल पास वाली काकी को दे दूँ ?"
" अरे दातारी ,पहले तू अपना तो देख।तेरी दूसरी जचकी होने वाली है,,,।"
ठिठरु कपकपाता बोला।
" तू भूल गया,मुझे हरीरा काकी ही पिलाती है।" रनिया ने गुड़ की चाय का ग्लास देते हुए तल्ख़ी जताई। तभी गुड्डी कुछ छुपाते हुए आई व पूछा, " बताओ तो माँ,क्या है?"
और झट से बच्चों के पुराने स्वेटर दिखाते बोली," ये मेरे आने वाले भय्यू के लिए।"
तभी खटारा रेडियो से ऐलान हुआ, " इस साल ज्यादा ठंड पड़ने की संभावना है। कोरोना के मरीज़ों की संख्या देखते हुए भविष्य में विस्फोटक स्थिति हो सकती है।"
सुनते ही मोटा स्वेटर व कन्टोपा पहने ठिठरु की ठिठुरन और भी बढ़ गई।
वह गुड्डी को गोद में ले चूल्हे के सामने बैठ चिंता जताता है, " देख री, अपने बच्चे को भी अभी ही आना था। "
सरला मेहता