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बिन धोखा लागे चोखा - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

बिन धोखा लागे चोखा

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बिन धोखा लागे चोखा

इतिहासी पन्नों की ये दुनिया
कहे धोखे की कई कहानियां
पीठ पीछे से छूरा भोकने की
सुनाती चटकारे से जुबानियां

फिरंगियों ने दिया बड़ा धोखा
व्यापार के बहाने देश हड़पा
मात्र हाथ मिलाया दोस्ती का
और फैला दिया बोरिया बस्ता

स्वर्ण-हीरे से गजनी ललचाया
सत्रह बार सोमनाथ को लूटा
मुगल आए व सिक्का जमाया
धरोहरों को नुक्सान पहुँचाया

पद्मिनी को खिलजीने सताया
खुद्दार रानी ने जौहर रचाया
लक्ष्मी दुर्गा प्रताप के किस्से
धोखा देने का सबक सिखाया

पड़ोसी देशों का गोरखधंधा
भारत ने सबको धूल चटाया
पूरब व पश्चिम दोनों तरफ से
रचा चक्रव्यूह अभिमन्यु फसा

पौधे इक इक गर ना रोप सके
वर्षा रानी भी दे देती है धोखे
पेड़ काट के गर नीड़ों को रौंधे
ये परिंदे उड़कर दूर जा बसेंगे

प्रेम सहयोग हमने ना सहेजा
रिश्तों का नाजुक बंधन टूटा
ना करे ,ना दे कभी ये धोखा
सब कुछ लगेगा चोखा चोखा
सच बिन धोखे के लागे चोखा
सरला मेहता

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