कविताअन्य
विषय -बारीश वाला प्यार
प्रतियोगिता
याद है जब सावन ने किया था श्रृंगार
बारीश की बूंदों ने दी मधुर थाप
सन सन चल रही थी पुरवाई
जब शीतल पड़ी फुहारें
खिलें खिलें मोगरें ,
रंगत बदली थी कलिया
मन के मोती महकें थें
जब हम पहली बार मिले थे
नदिया के तीरे तुम देख रहे थे
उठती लहरे जल की
मै ठहरी संध्या सी संकुचाई
अपलक देख रही थी छवि तुम्हारी
नभ मे चमकते चंदा सी सुकुमार
अनुपम ,मनभावन मुख पर
बिखरी मुस्कान सहज शीतल सी
लहरों के उठनें पर तुमनें
देखा मुझकों नयन भर
नयनों के तार मिलें थे पावन
उठी ह्दय हिलोर अति अनुपम
सहज सरलता से हाथों को थाम बैठाया था अपनें पास तुमने
खुशबु सी सुरसरि छायी तन पर
झुकी लाज से पलकें उठी
स्नेहिल क्षणों मे जल की बूंदों ने
तब हम दोनो को भिगोया था
प्रेम तरंगों मे ठिठकी लहरों मे
साक्षी बन बारीश वाला प्यार
अंकित कर दी थी मन मे स्नेह ज्योति उन विरल पलों मे
... अटल विश्वास बन चल पड़े जीवन पथ पर आज भी
हम सफर बन साथ .........
बबिता कंसल
दिल्ली