कहानीप्रेरणादायक
खुलाआसमाँ
आज मन में बहुत से ख्याल आते है , उन में से कुछ आज में लीख रही हूँ हो सकता है की ये आप की भी कहानी हो बचपन की अगर हो तो मुझे अच्छा लगेगा की आज मै आप के बचपन को छू के निकली ,
आज कल हम अपने बच्चो को बहुत कुछ सिखाते है ,की किसी से बात मत करना ज्यादा दूर मत जाना खेलने को या हम अपने साथ ही लेजाते है अपने साथ ही वापस घर में ले आते हे ,
मगर में अपनी बात करु तो मेरे बचपन के दिन बहुत ही खास यादगार है ,हम गरमी की छुटी में अपने मामा के घर जाती थी बस मामा के घर जाते ही सब भाई बहन मील कर क्या बहुत मस्ती करते थे ,सुबह से मामा के साथ खेत में
जाना बेलगाड़ी में मामी जी नाश्ते में रात की रोटी उस के ऊपर गुड़ वो नाश्ता सब से अच्छा लगता था उस के बाद हम खेत में खुब खेलते थे दोपहर को मामी खाना ले के आती बस खाने में रोटी आलू की सब्जी बहुत ही टेस्टी लगती थी , उस के बाद हम खूब टुबवेल्ल पर खुब खेलते मामा खेत मे पानी डालते खुब अच्छा लगता उस के बाद मामा हम सब को गना देते खाने में बहुत मजा आता शाम को हम बेलगाड़ी से वापस आते मजा आता था ,घर आते ही गरम गरम भुटे इंतज़ार करते , रात को खाना खाने के बाद हम उपर छत में सोते कितने सारे तारे उन को गिनते उस के बाद लगता की कही ये हमारे उपर ना गिर जाए , कितने अच्छे दिन थे वो बचपन के कोई फ़िक्र ही नही थी ,काश वो दिन वापस आ जाए मामा जी आप के घर की गुड़ रोटी बहुत याद आता है , मेने अपने घर में कई बार वो गुड़ रोटी खाई पर वो बात ही नही रही उस रोटी