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मैं समय हूँ ... - Abasaheb Sarjerao (Sahitya Arpan)

कविताछंद

मैं समय हूँ ...

  • 354
  • 9 Min Read

मैं समय हूँ,विशुध्द निरामय हूँ
कल भी था और कल भी रहूँगा
मेरी कीमत जो भी जानते हैं
वही अपनी मंजिल पाते हैं

मैं नहीं जानता आगे क्या होगा ?
लेकिन क्या हुवा ?कैसे हुवा ,क्यों ?
मुझ मे सबकुछ राज दफ़न तो हैं
मगर मैं कुछ कह नहीं सकता ना

मैं सबका दुःख दर्द महसूस करता हूँ
खुसी से झूम भी उठता हूँ बेशक
मैं रोता कभी हँसता हूँ समयानुसार
मेरा होना भी न होने के बराबर

मैंने बहुत सी लड़ाईया देखी , योद्धा भी
पुत्रप्रेम में अँधा ध्रितराष्ट्र भी देखा
हताश अन्धी राजगद्दी पर निष्ठांवाले भीष्म
धर्मराज ,अलोकिक प्रतिभावाला कृष्ण भी

दुर्योधन देखा , रावण और अश्व्थामा भी
हिटलर , मुसोलिनी ,सद्दाम ,अलेक्ज़ैंडर भी
रामायण में सीतामाई की अग्निपरीक्षा
और महाभारत में द्रोपदी चीरहरण भी

मैं समय हूँ लेकिन मेरा अस्तित्व केवल इतनासा
चराचर श्रुष्टि का बस एक छोटासा हिस्सा
ख़ुशी से पागल भी होता हूँ सच्चाई को देखकर
दुःखदर्द से अकेले में फुट फुटकर रोता हूँ अक्सर


मैंने बर्बादी के वो मंजर भी देखे और
सुवर्णयुग के दयाशील राजा महाराजा भी
बड़े बड़े तानाशाह और उनका हस्र भी देखा
मैं आहत हूँ इंसान इतिहास से क्यों सीखता नहीं ?
क्यों है देखता हैं मुंगेरीलाल के सुनहरे सपने

क्यों हर कोई अपने लालच , अपने दायरे में बंधा हुवा
परम ज्ञानी विधुर हो या पुत्रप्रेम में अँधा धृतराष्ट्र
राज गद्दी से केवल बंधा ,बेबस , हताश भीष्म पितामह
द्रोपदी का चीरहरण देखनेवाले वो सब रथी-महारथी

आखिर कब तक बेकसूर बेमौत मारा जायेगा ?
गरीब रोटी कपडा ,मकान , शिक्षा से वंचित रहेगा
सदियों से यह चलता आया हैं ,कब तक चलेगा ?
महाभारत तब भी था और आज भी हैं , कल भी रहेगा

धर्म का अधर्म से , अच्छाई का बुराई से
झगड़ा यह कभी ख़त्म न हुवा हैं न कभी होगा
मैं समय हूँ संजय बनकर देखता हूँ महाभारत
तब भी था और आज इसी वक्त भी

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