कविताअतुकांत कविता
लोरी
तू तो सोजा रे नँदलाल बाहर हाबू है विकराल
मेरे लाल के सोनी बुलई दूँ,काचा कान बिंदई दूँ ।
मीठो गुड़ मुंडा माँ दई दूँ, पैंजनियाँ पेरई दूँ।
तू तो,,,,
मेरे लाल के झूलो घड़ई दूँ,रेशम डोर बंधई दूँ ,
चारी पाया रतन जड़ई दूँ, सपना में सुलई दूँ ।
तू तो,,,,,
मेरे लाल को ब्याव करई दूँ,दुल्हन शर्मीली लई दूँ ,
दूर देस की सैर करई दूँ। हनीमून करवई दूँ ।
तू तो,,,,,
लोरी