कहानीलघुकथा
"क्यूँ बुलाते चाय पर ?"
"दादी सबको ऐसा क्यूँ कहते-चाय पर आइए।" हमारी परंपरा है यह चाय पर बुलाने की।" दादी ने समझाया। बिन्नू फिर पूछ बैठी," अनु दीदी को कोई देखने आने वाले थे,तब भी पापा फोन पर,,,।"
"अरे साहब आ जाइए। साथ में चाय पी लेंगे और चर्चा भी कर लेंगे। ये क्या सबकी ज़ुबान पर एक ही जुमला "चाय पर आइए जी"। लेकिन चाय के साथ पूरे बाज़ार की मिठाइयां सर्व की गई। "
दादी ने बिन्नू को झूले में बिठा बोला," देख तुझे लाखों में एक जीजा चाहिए ना। बस खिलाते- खाते चाय की चुस्कियों के साथ सब पूछताछ कर लेते हैं।"
बिन्नू झट से जोड़ती है,"देखने के साथ
बातचीत से स्वभाव भी पता चल जाता है। फिर सब जानकारियों से अन्य लोगों से पूछ सकते हैं।"
" अरे झूला इतना मत बढ़ा वरना,,तेरे दूल्हे को चाय पर नहीं बुलाऊंगी।" दादी पोपले मुँह से बोली।
सरला मेहता