कहानीलघुकथा
"वो नीला स्वेटर"
मुझे बचपन से सिलाई बुनाई का बड़ा शौक है।
पता नहीं था कि यह शौक मेरे लिए शॉक बन जाएगा।
हुआ यह कि मैंने शादी के बाद अपने प्रिय पति के लिए स्वेटर बुना। रंग भी उनका पसंदीदा चुना।
डिजाइन्स में तो मैं निपुण थी। एक बात बताऊँ,,,, मेरी मासी मुझे देर रात नींद में भी उठा देती थी। कोई बढ़िया डिजाइन का स्वेटर पहन के आता तो वह उतारने के लिए। जी हाँ,मैंने बड़े प्यार से स्वेटर बुनकर उन्हें पहनाया। बस एक ही ठंड में पहना था। अगली बार ढूंढा पर नहीं मिला। मुझे बड़ा ही अफ़सोस था कि काश उस स्वेटर में एक तस्वीर ही खिंचवा लेते।
तीन साल बाद रीवाँ से इंदौर ट्रांसफर पर आ गए। एक दिन इनके कोई असिसटेंट वही स्वेटर पहन हमारे यहाँ पधारे।
मेरे तो होश हवास गुम। पता चला महाशय जी ने उन्हें ठंड से बचाने के लिए दे दिया था। उसके बाद मैंने पति को कोई स्वेटर बुनकर नहीं दिया,कसम जो खाई थी। और फिर बीस वर्ष पूर्व स्वेटर पहनने वाले भी चले गए। वैसे उनका इरादा भी नेक था,किसी को ठंड से बचाने का,,,,।
सरला मेहता