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"वो है तो सही ना " - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

"वो है तो सही ना "

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" वो है तो सही ना "

सबको करवा चौथ की तैयारियां करते देख भैरवी सोना से पूछ बैठी, " बता ना क्या क्या कर रही है?" सोना मुँह बनाते बोली, "उहूँ,,, तेरा ब्याह हो गया क्या ? चल फिर भी,,, निर्जल उपास रखो, मेहँदी रचाओ पिया जी के नाम की, लाल चूनर, टीका, झेला कर्णफूल,, जो भी खरीद सको।"
भैरवी सोच में पड़ गई , "भुआ के पास सब हैं पर वो क्यों देने लगी भला।"
माँ से पूछा तो मिली लताड़ ," घर में नहीं दाने अम्मा चली बनाने।"
गणेश जी का नाम ले भैरवी मुँह अँधेरे नहा धो मेहँदी माँडने बैठ गई।
माँ चिल्लाती रही," बकरी चराने कब जाएगी ?"
जो भी नए कपड़े थे पहने और गुलाबी पीले कनेर फूलों से बना लिए जेवर। सब कहने लगे, "वाह री तू तो फ़ूलरानी बन गई।"
चाँद निकलते ही जुट गई सबके साथ पूजा में।भुआ ने टोक लगाई ,"क्यूँ री, किसके नाम का? भैरवी झट से तुड़ी मुड़ी तस्वीर निकाल बोली,"मेरे भानु के लिए। सेना में गया तो क्या हुआ ? आएगा ज़रूर,, वो है तो सही ना।"
सरला मेहता

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दादी की परी
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