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# किस्सा कहानी
"सोने का कड़ा"
बात मेरे दादाजी की है। वे गाँव के जाने माने जमींदार थे। उस जमाने में बैंकों में पैसे रखने का चलन कम था। प्रतिवर्ष खेती से जो आय होती, कोई बड़ा महंगा सामान खरीदते या सोने के गिन्नी जेवर आदि। जैसे सोने की जनेऊ,भारी कड़े आदि। ये गहने दादाजी ऊपर छत में,अनाज की बुखारियों आदि में रख देते थे ।
एक दस बारह तोले का कड़ा सुरक्षित कमरे में गाड़ दिया। ताकी विवाहों में काम आ सके। हमारे परिवार में कुल पाँच बेटियाँ थी। हमारे ब्याह के पूर्व तलाशने पर वह कड़ा नहीं मिला। पूरा कमरा खोद डाला। कहीं रखकर भूल गए बिना सबूत किसको दोषी माने। पूरी हवेली छान मारी पर पता नहीं चला।
कामवाले भी कई थे।कई जानकारों से पूछने पर मालूम हुआ कि घर में ही किसी ने चुरा लिया। बस पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था।
सरला मेहता