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# किस्सा कहानी
"☺️अच्छी भुलक्कड़ हूँ"
प्रत्येक व्यक्ति ज़िन्दगी के अनचाहे लम्हें भूलना चाहता है। इसके लिए वह व्यसनों का सहारा लेता है। क्यूँ न रात के स्याह अँधेरे को यह मान कर चले कि फिर सुबह होगी।
मेरी प्रकृति थी कि किसी का अप्रत्याशित व्यवहार या कड़वे बोल मैं भुला नहीं पाती थी। उससे रिश्तों में खटास आना स्वाभाविक है। जो बात निरन्तर चिंतन करते हैं , वह ओठों पर आए बिना नहीं रहती।
मैंने बस सिक्के के दूसरे पहलू को ही देखना शुरू किया। बुराइयों के स्थान पर अच्छाइयाँ ही देखनी लगी।
ऐसा अनोखा नायाब भुलक्कड़पन अपना कर एक अमोल ख़ज़ाने के मालिक बन सकते हैं। मधुर रिश्ते, बेशुमार मीठी यादें,अटूट मित्रता और इन सबसे भी ऊपर,सुपर मन की शान्ति ।
जी हाँ, यही तो मैं कहीं रखकर भूल गई थी,जो मैंने पा ली है। यही है मेरा आज का किस्सा।
सरला मेहता