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चिंता मत करो - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

चिंता मत करो

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चिंता मत करो


सिया वार्ड में बैठी उनींदी सी हो अतीत में खो जाती है," पति उसके अस्थमा का कितना ध्यान रखते हैं। ख़ुद भी गठिया रोग से परेशान। इसके बावजूद भी पोते पोती को स्टॉप पर छोड़ना लाना,उन्हें घुमाने ले जाना बेनागा करते थे। स्कूल पूरा हुआ और चिड़ा चिड़ी फुर्र। सोचते सोचते सिया को पता ही नहीं चला कि राम जाग गए हैं। वे पत्नी से कहते हैं," योजना बनाई थी कि निवृत्ति के बाद घूमने जाएंगे,,,अब इस केंसर को होंना था।मित्र रिश्तेदार भी कहने से नहीं चूकते,"ऐसे कैसे बहु बेटे....बुढ़ापे में माँ बाप को अकेला छोड़ दिया।"
राम बुढ़ापे में पत्नी को सेवा करते देख कहते हैं," बेटे अनुभव की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। अपनी हैसियत नहीं होने पर भी आय आय टी करवाया।
उसकी मर्ज़ी से ब्याह भी किया। हमने पोते पोती को भी पाला। तीर्थयात्रा जाने की उम्र में बेटे के परिवार के लिए जान झोंक दी। और आज तुम्हें मेरी सेवा करनी पड़ रही है।" सिया दिलासा देती है,आपको तो खुश होना चाहिए,पोता इंजीनियर और पोती सी ए बन गई है। राम भी रुआंसे हो पत्नी को आश्वस्त करते,
"मेरे बाद तुम भी विदेश घूमना,मेरी चिंता मत करो।"
सरला मेहता

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दादी की परी
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