कविताअतुकांत कविता
माँ
होले से चपत लगाकर के
सूरज संग मुझे जगा देती
जो मेरे सपने सजाती थी
वो सपनों में क्यूँ समा गई
माँ ! तू बहोत याद आती
माथा मेरा सहला करकर
बालों को तू सुलझाती थी
लाल रेशमी रिबन बांधके
भालपे मीठी मुहर लगाती
माँ ! तू बहोत याद आती
नाज़ुक महकते हाथों से
गरम नाश्ता रोज़ कराती
बस में मुझे चढ़ा कर के
भारी बस्ता थमा जाती
माँ ! तू बहोत याद आती
जन्मदिन की तैयारियों में
कई रातें माँ तू नहीं सोती
मुश्किलें जो आती मुझपे
हर मर्ज़ की दवा बताती
माँ ! तू बहोत याद आती
अब तेरी नातिन मुझको
दिनभर नाच नचाती है
झुंझलाती थकके मैं बैठूँ
तस्वीर से तू है मुस्काती
माँ ! तू बहोत याद आती
जब माँ शब्द होता ध्वनित
मेरी माँ मनोरमा याद आती
सरला मेहता