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कोई दिल में जब उतरता है - Gaurav Kumar (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कोई दिल में जब उतरता है

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कोई दिल में जब उतरता है
क्या खबर थी फिर दिल नहीं संभलता है ।

रौशन रहे मेहबूब का घर हर लम्हा
अब दिल शाम - ओ- सहर चिराग सा जलता है ।

तुम्हारी याद में इस तरह से रिसते हैं अश्क मेरे
जिस तरह से जलकर मोम पिघलता है ।

तुम आओ तो थम जाये ये वक्त मेरा
अकेला हूँ इसलिये बेवजह हाथों से फिसलता है ।

लाख छुपा ले रात उसको अपनी पनाह में, लेकिन
सुबह की आवाज पर सूरज फिर निकलता है ।

क्यों परेशां है इश्क में इतना कि रात भर
कभी हाथ तो कभी आंख मलता है ।

आ बैठ घड़ी भर बातें करें कि बात से
हर बात का हल निकलता हैं ।

उछाले कीचड़ मोहब्बत में कोई तो ये ज़हन में रख
खुशबुओं का कमल कीचड़ में ही खिलता है ।

हकीकत जानना हो “गौरव” तो सीरत देख ,
सूरत से शख्सियत का पता कहाँ चलता है ।

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