कविताअतुकांत कविता
कोई दिल में जब उतरता है
क्या खबर थी फिर दिल नहीं संभलता है ।
रौशन रहे मेहबूब का घर हर लम्हा
अब दिल शाम - ओ- सहर चिराग सा जलता है ।
तुम्हारी याद में इस तरह से रिसते हैं अश्क मेरे
जिस तरह से जलकर मोम पिघलता है ।
तुम आओ तो थम जाये ये वक्त मेरा
अकेला हूँ इसलिये बेवजह हाथों से फिसलता है ।
लाख छुपा ले रात उसको अपनी पनाह में, लेकिन
सुबह की आवाज पर सूरज फिर निकलता है ।
क्यों परेशां है इश्क में इतना कि रात भर
कभी हाथ तो कभी आंख मलता है ।
आ बैठ घड़ी भर बातें करें कि बात से
हर बात का हल निकलता हैं ।
उछाले कीचड़ मोहब्बत में कोई तो ये ज़हन में रख
खुशबुओं का कमल कीचड़ में ही खिलता है ।
हकीकत जानना हो “गौरव” तो सीरत देख ,
सूरत से शख्सियत का पता कहाँ चलता है ।