कविताअतुकांत कविता
नमन मंच
#विषय:स्वतंत्र लेखन
शीर्षक:स्त्री विशेष
स्त्री हो सकती क्या तुझ जैसी कोई दुसरी,
किसकी है तूझे फिकर,गुजरते ही तेरे महक उठती इतर,
ऐसा कोई मन्च नही जहाँ न हो तेरा जिकर।
खूद को तु क्यो आँकती,कैसी है तु इसके लिये दुसरे को ताकती,
झाँक तु अपने अन्दर मिल जायेगा तुझको समन्दर।
पढ तु खूद को ,जन्म देती तु दूसरे वजूद को,
मिलती क्या जीवन सत्यवान को सावित्री जब तक छीनती नही यमराज से उसके प्राण को।
राधा बिन श्याम अधूरा,सिय बिन कैसे राम हो पूरा,
तु निश्छल निस्वार्थ ,मनोरम जैसे मीरा का प्यार।
तु ही नैइया तू ही खेवैइया,तु ही पावन गँगा मैईया।
तु धरा है तू धन्य है,तुझसे ही सब अन्य है,
तु देश है विशेष सबमे तेरा अवशेष है।
क्या तुझको ये नही भाता ,कहते सब जब भारत माता,
लगती हर वो आवाज बूलन्द गुँजे जब धरती माँ कि सौगन्ध।
हूँकार भर तु स्त्रीत्व पर ,अभिमान तु कर नारीत्व पर,
खुद को तु मान दे सम्मान दे ईक न्ई पहचान दे।
तू ही है शुरुआत तझसे ही हर राह का अँत ,तो अब ये कैसी विलम्ब , फैला ले तु अपने पँख,देख जरा तु आईने मे जी ले तु खुद के सँग।
कर ले तु अब सँकल्प,हो नही सकता तेरा विकल्प।
तु सर्व है,तेरे होने से पर्व है, तु हर नारी का गर्व है।
गउ तु गँगा तु देश और धरा भी तु ,
हर जगह व्याप्त है तु खुद मे ही पर्याप्त है तु।
अब आ गया सही वक्त सब चुम रहे तेरा मस्तक ,अब सखी कैसा ये शक।
आई खूशी तेरे मुख मँण्डल पर फैला दे ममता का आँचल।
कर बद्ध करूँ प्रभु तुझसे विनती,
आउँ धरा पे जब भी मै रूप मेरा हो फिर वही स्त्री।
हे स्त्री करती हूँ नमन ,तन मन करती हूँ अर्पन,
तझसे ही सम्पूर्ण मेरा समस्त जीवन।
👇👇🙏🙏🙏🙏✍️✍️✍️
सवित सिंह मीरा
झारखंड
जमशेदपुर