कहानीलघुकथा
आखिर क्यूँ ? कब तक ?
विभा मध्यमवर्गीय परिवार की सर्वगुण संपन्न बेटी है।प्रारम्भ से ही प्रतिभाशाली रही विभा ने इस वर्ष बी ए की परीक्षा में यूनिवर्सिटी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है।पिता गुप्ता जी सेवानिवृत्ति के पूर्व उसके हाथ पीले करना चाहते हैं।ताकि दो छोटी बेटियों को भी शिक्षित कर सके। संयोग से उन्हें अच्छी हैसियत वाले एक परिचित मिल जाते हैं।उनका इकलौता बेटा कलेक्टर कार्यालय में लेखापाल है
खाते पीते घर में बेटी का रिश्ता तय होने से गुप्ता जी फूले नहीं समाते। विभा पापा से कहती है,"लेकिन मुझे तो प्रोफेसर बन अपनी बहनों को डॉक्टर इंजीनियर बनाना है।" पिता डांटते हुए कहते हैं,"यह सब शादी के बाद भी कर सकती हो।तुम्हारे ससुर हर बात के लिए तैयार है।"
नव ब्याहता विभा को पति के तेवर का अहसास गृहप्रवेश के बाद ही हो जाता है।पहले घर के काम निपटाओ फिर पढ़ाई,बीमार पिता की तीमारदारी के पहले सास ससुर की सेवा करो।इन सबके बावजूद विभा एम् ए के इम्तिहान में अव्वल आती है।अब बस पी एच डी करना है।एक प्यारी सी बेटी की माँ बनी पर उलाहना यह कि माँ पर गई है,तभी तो बेटी हुई।
ऊपर से पति का फरमान,
"कोई नौकरी वोकरी नहीं,घर संभालो।
विभा अपना सामान पैक कर लेती है।दौरे पर गए पति की राह देखे बगैर वह बेटी को ले पिता के घर चल देती है।वह सोचती है,"आखिर क्यूँ व कब तक झेलेगी यह प्रताड़ना।कल पी एच डी का फ़ार्म भरने की आखरी तारीख है ।"
सरला मेहता