कविताअतुकांत कविता
दो चाँद उतर आए
कब आए करवाचौथ बाट जोहूँ
महावर लगाऊँ मैं मेहँदी रचाऊँ
लाल चूनर में सितारे टकाऊँ
टीको बिंदी नथनी झुमके मंगाऊँ
मंगलसूत्र में मेरे हीरे जड़ाऊँ
परदेस बसे सजना को बुलाऊँ
इंद्रधनुषी करवे माटी के मंगाउँ
मेवा बतासा से पूरे ही भराऊँ
निर्जल रह पी की उमर बढ़ाऊँ
सौलह श्रृंगार कर वारी जाऊँ
हँसी ठिठौली सखियाँ बुलाऊँ
साजन के रंग में ही रंग जाऊँ
पूजन थाल मगन हो सजाऊँ
दीए में प्रेम की बाती जलाऊँ
चलनी से पिया की छवि पाऊँ
पी पिलाए पानी तो प्यास बुझाऊँ
नई दुल्हनिया सी शरमाऊँ
सास ननद के आसीस मैं पाऊँ
सरला मेहता