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घनी छैया - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

घनी छैया

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घनी छैया हो

वृक्षों के यहाँ वहाँ झुरमुठ हो
हरियाला हमारा मधुबन हो
शाखाओं पे सुंदर से नीड़ों में
चहकते पंछियों का बसेरा हो

बालियां गेहूं की लहराती हो
कतार में मटर की फलियां हो
सारे हरे खलिहानों व खेतों में
गीत गाती गोरियों का घेरा हो

रोटी चटनी बगल में गगरी हो
हाथ थामे आते गोरी-मुन्नू हो
लहलहाती फ़सल के सपने में
मेढ़ खेत पर् सुस्ताता दीनू हो

हल चलाता गाता किसना हो
बैल ये बजाते गलघण्टियाँ हो
बीजों की झोली रामी के हाथ
साजन सजनी की ठिठोली हो

अमिया नीबू अमरुद आम हो
पीपल के पेड़ों पे कई झूले हो
फूलों की डालें मिले राहों में
नीम बरगद की घनी छैया हो
सरला मेहता

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