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पढ़ पाऊँ - Sandeep Chobara (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

पढ़ पाऊँ

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पढ़ पाऊँ

हमेशा से ही
मेरी हरसत रही है ये
कि मैं भी कभी देखूँ
किसी को सामने बैठा कर
उसकी झील सी आँखों में
अपने को डुबो कर....!

एक ख्वाहिश ही रही कि
उसकी आँखों को पढ़ पाऊँ
क्या लिखा है उसके दिल में
क्या चाहत है उसकी
क्या दर्द है उसकी आँखों में
यहीं जानने के लिए
प्यार भरी नज़रों से
झांकना उसकी नज़रों में
एक तमन्ना ही रह गई.....!


संदीप चौबारा
फतेहाबाद
03/11/2020

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