कहानीप्रेरणादायक
सेतु,,,,,,भाग (2)
लंबी कहानी
पार्थ की पढ़ाई क्या शुरू हुई, धरा की शामत ही आ गई। एक और बड़ी समस्या। जैसे जैसे वह किशोर और समझदार हो रहा है,
पापा से उसका छत्तीस का आंकड़ा रहने लगा। वह अपनी मम्मा पर जो गया है। पापा चाहते आय ए एस करे,बेटा वैज्ञानिक बनने के सपने सँजोता है। धरा बेचारी दो पाटन के बीच पिसने लगी, कैसे बनाए सामंजस्य।सानिका को दुखड़ा सुना कर कुछ हल्का हो जाती है। पापा बेटे ने आजतक एकसाथ कभी खाना नहीं खाया।आकाश पार्टीज़ करते रहते हैं ताकि बेटे की पहचान करा सके। बेटे को अपने थियेटर से फुरसत नहीं।
पार्थ को यू एस से एक संस्था से शोधार्थी हेतु पत्र आकाश को मिलता है। बस महाभारत तो छिड़ना ही है। सारी बातों बुराइयों का ठीकरा धरा के माथे।बमुश्किल समझाइश के बाद आखिर पार्थ अपने सपनों की उड़ान भरने में कामयाब हो जाता है लेकिन धरा,खोटा नारियल होता ही है होली के लिए।
पार्थ की पढ़ाई के दौरान अपनी सहपाठानी पूर्वा से अच्छी पटरी बैठती है। दोनों की दोस्ती प्यार में बदल जाती है। पार्थ माँ को बताता है कि पूर्वा संस्कारी व सुशील है। अब यह मसला धरा के लिए एक और चुनौती। वह भारत में रह रहे पूर्वा के माँ पापा से मिलकर योजना बनाती है। सानिका उनकी मुलाक़ात अपने भाई से करा करा धरा का साथ देती है। वरना आकाश ने अपने मंत्री मित्र की आधुनिका बेटी को पसन्द कर रखा था।
विवाह सानन्द सम्पन्न होने के बाद थकान से भरी धरा सोचती है," वह कैसी डोलती कश्ती है जो मानो दो किनारों को मिलाने के लिए ही बनी है। उसकी पूरी जिन्दगी ही
रिश्तों को जोड़ने की डोर बनने में बीत गई। वह तो बस एक सेतु मात्र है,नदियों को जोड़ने वाली।" तभी सानिका आती है चाय का मग लिए और पुकारती है,"किस सोच में डूबी हो मेरी फेविकाल भाभी ?"
सरला मेहता
इंदौर
मौलिक