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सेतु,,,,,,कहानी भाग,,,1 - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायक

सेतु,,,,,,कहानी भाग,,,1

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सेतु,,,,,भाग ,,,,१
लंबी कहानी


प्रतिभाशाली धरा का बी ए का नतीज़ा आया नहीं था।और ,,,बड़ी भुआजी दादी के पीछे हाथ धोकर ही पड़ गई। भाभी को सुनाते हुए बोली, "अम्मा ! क्या है तुम भी बड़े आराम से बैठी हो। लड़की जवान हो रही है। भैया भाभी को तो अभी वह बच्ची ही लगती है। ज़माना बड़ा खराब है। रोज ही सुनते हैं,फिर कॉलेज में लड़कों का साथ।" भाभी बोली,"क्या करूँ दीदी आपके भैया को आप ही मनाओ।"
बस फिर क्या था,,,ताबड़तोड़ अफ़सरी करने वाला सुदर्शन दूल्हा भी मिल गया। लड़की की राय जानना किसी ने उचित नहीं समझा। शालीन सौम्य धरा खानदानी घर की बहु बन गई।
इकलौती संतान आकाश के अपने ही कानून कायदे चलते हैं। ससुराल में आकर वह बस एक कठपुतली बन कर रहेगी। हालांकि घर में सास ससुर नहीं हैं। किन्तु बड़े बूढ़ों की कमी अकेले पति देव ही पूरी कर देते हैं। जो अख़बार पत्रिकाएं आकाश को पसन्द वही मंगाई जाती है।
हाँ, यदि धरा का कोई सहारा है तो हमउम्र ननद सानिका।वह बेचारी भी परिस्थिति की मारी।ब्याह के दो माह बाद ही अपने पति को खो बैठी। पीहर में भी उसका कोई अस्तित्व नहीं। अधूरी छूटी पढ़ाई करना चाहती है किंतु भाईसाहब इजाज़त दे तब ना।धरा ख़ुद भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है। दोनों तय करती हैं कि साहबजी की ग़ैरमौजूदगी में अपनी पढ़ाई जारी रखेंगी। और ऑनलाइन फॉर्म्स भी भर देती हैं।
हाँ, साहबजी के घर आने से पूर्व घर को व्यवस्थित कर लेती हैं। चादर पर्दे सब करीने से हो। कही कुछ बिखरा भी ना हो। फिर भी आते ही ओले बरसने लगते हैं," आज इन अखबारों की प्रदर्शनी लगी है क्या ? ये चाय में कुछ कमी है,दूसरी बनाओ।" दोनों ननद भौजाई कनखनियों से इशारा करते सारे आदेशों का पालन करती हैं।
इधर धरा के पैर भारी हैं। दोनों ही सहेलियां चटपटी चाटों की शौक़ीन।बस अपने मुँह लगे नौकर से मंगा झटपट खा लेती। रात के खाने पर वही डाँट," ये क्या इतना कम खाना,,ऐसे में अपना ध्यान रखो।सानिका, कल से भाभी को फल हरी सब्जियां वगैरह खिलाने का जिम्मा तुम्हारा।"
समय से गोल मटोल बेटा पार्थ पाकर आकाश फूले नहीं समाए। बच्चे की दैन्मदिनी का चार्ट किचन में लटका दिया। और माँ बेटे की सेहत के लिए सानिका को हिदायतें मिल गई।
सानिका के भी सजने धजने के बड़े अरमान थे,भाभी ने वे सब शौक भी पूरे कर दिए। सानिका के मुंह से कई बार निकल पड़ता," मेरी भाभी तुम काश पहले मिल जाती।" वसुधा मन ही मन सोचती अपने विधुर भाई अमन के बारे में ," कितना अच्छा होगा अगर सानिका उसकी भाभी बन जाए।" लेकिन पति से कुछ कह नहीं पाती डर के मारे। रात में कई बार वह पति के साथ प्रेमरोग जैसी मूव्ही लगा उन्हें दिखाती रहती। बातों बातों में याद भी दिला देती ," हमारी सानिका भी माँ बन गई होती यदि,,,,,।" शेखर हाँ हूँ करके बात टाल देता। बीच बीच में बड़ी भुआजी आ जाती है भड़काने के लिए। किन्तु भुआजी ट्रम्प कार्ड भी ज़रूर है साहबजी को मनाने का। वह बात छेड़ती है,"जी मेरा भाई है,,,अच्छी खासी नौकरी है। उसके लिए भी कोई वैसी ही लड़की बताओ ना भुआजी।" वो भी धीरे धीरे बहु की बातों में आ सानिका के लिए सोचने लगती है। एक दिन अच्छा मूड देख शेखर के कान में बात डाल ही दी।और आग भी लगादी कि सानिका सी जवान लड़कियाँ भाग भी जाती है।फिर क्या था,चट मंगनी और पट ब्याह।
ब्याह इतनी जल्दी कैसे? पार्थ की पाँचवीं की परिक्षा का क्या होगा ? बच्चे की पढ़ाई में व्यवधान तो बिल्कुल नहीं। यूँ भी दोनों सखियाँ पार्थ की परवरिश में आदेशानुसार जुटी रहती हैं। तूफ़ान कभी भी आ जाए। सारे समय यही अंदेशा रहता है कि पार्थ को समय पर दूध पोष्टिक खाना फल मेवा दिया गया या नहीं। टी वी उसने कितनी देर और क्या देखा,क्लास या खेलने समय से गया या नहीं। और परीक्षा के बाद शुभ मुहूर्त में
सारी तैयारियां अच्छे से कर सानिका धूमधाम से विदा हो गई ।
सरला मेहता
कहानी "सेतु" अविरत,,,भाग(2)

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दादी की परी
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