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आज की शिक्षा समाज एवं देश को किस तरफ ले जा रही है। अगर वास्तविकता देखी जाये तो हम जो आज के छात्रों को शिक्षा दे रहे हैं, वो उनको सिर्फ और सिर्फ एक तुच्छ मानसिकता का इंसान बन रही है।
आज की शिक्षा का इतना उच्च स्तर होने पर भी समाज की दशा दयनीय है। आज की शिक्षा पद्धति से कोई विवेकानंद पैदा क्यूँ नही होता, क्यूँ पैदा नही होते रामकृष्ण परमहंस , चाणक्य जैसे गुरु और ना ही भरत, शिवाजी, भगत सिंह, रानी लक्ष्मीबाई और क्यों पैदा नहीं होते एकलव्य, आरुणि, उपमन्यु, चंद्रगुप्त जैसे शिष्य।
सवाल बिल्कुल सटीक है, क्या हम नहीं चाहते या ऐसी कोई प्रणाली ही नहीं है हमारे देश में जो ये एक भावी राजा, गुरु, शिष्य पैदा कर सके। सालों से चला आ रहा शिक्षा का वह ढर्रा जो सिर्फ संकुचित सोच के मानव तैयार कर रहा है। ये ढर्रा वह इंसान पैदा कर रहा है जिसमे कोई मानवीय गुण नहीं, ना ही इंसानियत, न मानवता, और ना ही वह नैतिक गुण जिससे हमारे मानव होने का अस्तित्व परिभाषित होता है।
माता पिता बच्चे के प्रारंभिक गुरु होते हैं। आज की अधिकतर महिलाओं को माँ का सार्थक अर्थ ही नहीं पता , आज के पिता को अपने बच्चों की आर्थिक, शारीरिक जरूरतों के अलावा जिम्मेदारी नहीं पता, तो कहाँ से पैदा हों वो योद्धा ,जो एक माँ अकेले ही अपने बच्चे को शिवाजी, लव कुश और भरत बन देती थी।
आज आवश्यकता है एक शिक्षक को अपने गुरु होने की भूमिका निभाने की, जो हमारे गुरुकुलों के अस्तित्व समाप्त होने के बाद ही सिर्फ नाम मात्र के शिक्षक रह गये हैं। यदि आज एक शिक्षक अपने अनुभव, कर्तव्यों एवं गुणों से ऐसे छात्र बना सके जो आगे की पीढी को जानकारी पहुंचा सके तो कहीं, कुछ दशकों में बदलाव की सम्भावना है। नहीं तो मानव जाति से मानवीयता जाने से कोई नहीं रोक सकता।
टिंकू शर्मा "मिथलेश"
अलीगढ(उत्तर प्रदेश)