कहानीलघुकथा
यूज़ टू
विकसित शहर की सबसे व्यस्त सड़क…
सड़क के दोनों तरफ़ बनी दुकानें और उनमें आते जाते लोग। सब अपने अपने कामों में व्यस्त।
उसी सड़क पर दौड़ रहीं हैं बदहवास सी गिरती पड़ती लड़कियाँ, महिलाएँ , बच्चियाँ..
उनमें से कुछ के चेहरे ढके हुए हैं, कुछ के झुलसे हुए, कुछ अस्त व्यस्त साड़ी में, कुछ सलवार सूट जिनके दुपट्टे कहाँ गिर रहें उनको होश नहीं,
कुछ छोटी-छोटी फ्रौक में, कुछ तथाकथित सभ्य समाज की नज़रों में नग्न वेस्टर्न कपड़ों में और कुछ बिना कपड़ों में ही …
उनके पीछे भाग रहें हैं पुरुष जिन्हें अपनी मर्दागनी पर घमंड हैं , उनके ठुकराए हुए आशिक़ एसिड लिए हुए, उनकी उन्नति से घबराए हुए… उन को डराने, दबाने, धमकाने या हमेशा के लिए उनकी आवाज़ को बंद करने के लिए ।
व्यस्त लोग उन पर एक नज़र डाल , फिर अपने-अपने कामों में लग जाते हैं। नूज़्पेपर, सोशल मीडिया और टीवी न्यूज़ में रोज़ाना ही आती इस तरह की ख़बरों से अब वे यूज़ टू हो चुके हैं।
ऊषा भदौरिया