लेखअन्य
विषय,,चिट्ठियों का दौर
शीर्षक,," जो कह नहीं पाई,,,"
हड़बड़ी में आए अयाना के फोन से शरद फटाफट घर आए।दरवाज़े पर ही पत्नी हाथ में ट्रॉफी लिए बताने लगी," आज क्लब में पत्र लेखन प्रतियोगिता में मैं प्रथम आई हूँ।" शरद पूछ बैठे,"अब बताओगी नहीं , क्या चिट्ठी लिखी तुमने ?" पति का हर आदेश पालन करने वाली पत्नी ने अपनी पाँती पेश कर दी,,,
सुनो जी ,
बहुत सारा,,,,,,
आज देखो मैं चुकूगीं नहीं,
सब कुछ लिख दूँगी जो आज तक कह ना पाई।
हाँ जी,आप बहुत चाहते हो मुझे।बड़ी मंहगी साड़ियाँ जेवर लाने में कंजूसी नहीं करते।इतनी लकदक भारी साडी में मैं बुत सी खड़ी रह जाती हूँ।और ऊपर सेगहनों का बोझ ,कैसे सहू ? पता मैं शिफॉन जॉर्जट की साड़ियां हल्के फुलके मोती आदि के गहनों के साथ सुकून पाती हूँ।
हाँ, आप मुझे धूमधड़ाके वाली मूव्ही खूब दिखाते हो।
अरे कभी किसी नाटक काव्य गोष्टी के लिए भी ले जाया करो।
मैं रोज रोज बेमन से मसाले वाले पनीर कोफ्ते आदि खा लेती हूँ। क्या कभी मेरी पसन्द के भरवां गिलकी,
आलू मेथी,कड़ी पकौड़ा तुम्हें याद नहीं आते।
कान फोड़ू गाने आख़िर कब तक सुनू ? कभी ग़ज़ल ठुमरी भी बस मेरे खातिर सुन लिया करो मेरे प्रियतम।
और हाँ ,विदेशों की सैर तो खूब कराते हो।कभी मेरे पीहर के उस गाँव भी चलो ना ,मेरे साथ।
लिखने को बहुत कुछ है।अब फिर कभी।
तुम्हारी अपनी ही
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शरद ने एक सांस में पूरी चिट्ठी पढ़ डाली। अयाना पति के मुखारविंद पर आ रहे भावों को पढ़ती रही। फिर कुछ सोचकर शरद डरी सहमी पत्नी को गले लगाते बोले," तो फिर आज की शाम तुम्हारे नाम,चलते हैं तुम्हारी वही अभिमान फिल्म देखने।" अयाना सोचने लगी,
"जो कह नहीं पाई चिट्ठी ने बयाँ कर दी।'
सरला मेहता