कविताअतुकांत कविता
दो कविताएं
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(एक)
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सड़क बहुत लम्बी
बीच में डिवाइडर के अंदर
फाइबर के पेड़ों पर लटके हरे हरे पत्ते
सड़क के दोनों तरफ मकान
एक बच्ची चुपचाप बैठी छत पर
पेड़ों को देख रही थी
एक चिड़िया बड़ी देर से एक ही जगह पर बैठी थी
आसमां बिलकुल साफ है
हवा भी चल रही थी
सड़क पर गिरे कागज प्लास्टिक बैग उड़ रहे हैं
वह चिड़िया अब भी वहीं बैठी है
हाथ आसमां की ओर करके बच्ची हवा को महसूस करने की कोशिश कर रही है
परेशान बच्ची रोने लगी
बच्ची की माँ बच्ची को गोद में लेकर चुप कराने की कोशिश करने लगी
बच्ची अब जोरों से रो रही थी
बहुत मानमनौव्वल के बाद बच्ची
चिड़िया की ओर इशारा करके कहती
माँ-
चिड़िया
पापा की तरह
हिलडुल नहीं रही है.....
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©व्ही. व्ही. रमणा"किरण"
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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(दो)
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समन्दर है पानी खारा नहीं
आज न कृष्ण हैं मीरा नहीं
डाली डाली होते पहुंचे ऊंचाईयों में बंदर हैं
जोड़ तोड़ कर ही लिखते हैं बड़े समन्दर हैं
जंगल में लाल फूलों से लदे हो
दरख्त ने झुककर जमीं को चूमा हो
उनके फूल पानी में नहा रहे हो
तड़के आसमां मुठ्ठियों में भर लिया हो।
उड़ते रोजी स्टार्लिंग का मन पढ़ लिया हो।
लॉकडाउन में अनलॉक अल्फ़ाज़ में कविताएं लिख लिया हो
बिजूका चिड़ियों से दोस्ती कर लिया हो
लहरों ने किनारे को आगोश में भर लिया हो
ओस की बूंदों को तलबों से
चिपकने को आप यूं महसूस करती हो
अभी शाम हुयी नहीं सूरज डूबा नहीं
मेरी किताबों में तेरा कुछ भी मिला नहीं
समन्दर है पानी खारा नहीं
आज न कृष्ण हैं मीरा नहीं
©व्ही. व्ही. रमणा"किरण"
बिलासपुर छत्तीसगढ़