कविताअन्य
तुम भी कर सकते हो
मिटा के तम बिखरे मन का
रथ का पथ सवार चल
अविरल बहती जग की धारा में
तू भी हो तैयार चल ।।
जो फूल मुरझाए हैं उपवन में
उनको तू दे बाहर चल
इस बहती सांसो की धारा में
तू भी कर इकरार चल ।।
जो आहें बिखरी निर्जल वन में
उनका जीवन सवार चल
इस प्यासी जीवन की गगरी में
तू भी दो बूंदे डाल चल ।।
ले शपथ तू हो अथक
कर मन से सबका आभार चल
जो मिला तुझको अमन
कर तू भी अब श्रंगार चल ।।
पवन गोयल
दिल्ली