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तेज़ धूप - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

तेज़ धूप

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तेज़ धूप
लघुकथा
पति के देहांत के पश्चात चुन्नी बाई चप्पल जूते सुधारने की गुमठी सम्भालती है। जैसे तैसे अपने होनहार नानू की परवरिश जो करनी है।पति ने बड़े अरमान से बेटे का दाखिला अंग्रेजी स्कूल में करवाया था। कुशाग्र नानू अच्छे नम्बरों से पास होता हुआ दसवीं में पहुँच जाता है।वह इंजीनियर बन कलेक्टर बनना चाहता है। लालटेन की रोशनी में रातभर पढने वाले
नानू को कई मशक्कतों का सामना करना पड़ता है।ट्यूशन कर अपनी कोचिंग के लिए फ़ीस जुटाता है। चुन्नी भी आसपास रहने वाले साहबों से सलाह मशविरा करने में पीछे नहीं रहती।
कभी कभी नानू को कमियां खलने लगती है।माँ उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए सरपंच व अन्य पढे लिखे लोगों से मिलवाती रहती है।वह कई बच्चों की ट्यूशन दिलवाती है और समझाती है,
" बेटा , इससे तेरा ज्ञान बढेगा।" नानू को माँ के साथ गुमठी सम्भालने में शर्म महसूस होती है।माँ उससे कहती है," बेटा, तुम मेरे सूरजमुखी हो।" जानते हो यह फूल कैसे खिलता है ?" नानू झट से जवाब देता है,"सूरज की तेज़ धूप से से माँ।" माँ बेटे को दुलारती हुई कहती है," हाँ मेरे बेटे,तुम्हें भी
कड़ी तेज़ धूप तो सहनी ही पड़ेगी पूरी तरह खिलने के लिए।
सरला मेहता

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