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सिमटते परिवार - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

सिमटते परिवार

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सिमटते परिवार

सभ्य होते समाज में,सिमट रहे हैं परिवार
रीनी टिंकू मम्मा पापा,छोटा सा रह गया संसार
क्या इसको कहते हैं विस्तार?

चाचू का वो घोड़ा बनना,दादा संग सैर पे जाना
दादी ताई की कहानी,भुआ का वो लोरी गाना
कहाँ गम हुए ये किरदार ?

पापा जाते हैं काम पर,किटी पार्टी मम्मी की है
बच्चे घर स्कूल से आते,टी वी संग मौज मनाते हैं
कहाँ गए सारे संस्कार ?

नूडल्स पिज्जा पास्ता खाकर सेहत का हो गया कल्याण
ताज़े सब्ज़ी दाल चांवल,चूल्हे की रोटी गरम गरम
भूले क्यों पापड़ अचार ?
जब सब साथ में रहते थे,हर दिन उत्सव होता था
त्यौहार मनाते मिलजुल कर
खुशियों का वो जमघट था
ये कैसे गुमसुम परिवार ?

बुजुर्ग हो या कोई बीमार,सेवा सबकी होती थी
एक कमाता सब खातेथे,
गुजर बसर हो जाता था
क्यों टूट गए रिश्ते सारे ?
सरला मेहता

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