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स्वरलहरी - Arvina Gahlot (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

स्वरलहरी

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स्वरलहरी

सुबह का सूरज मुंडेर पर किरणें बिखेर रहा था नीले ने अपने कमरे में गिटार बजाने के लिए उठाया उधर दूसरे कमरे से पापा का स्वर गूँजा , आज फिर तुम माँ की चप्पलें नहीं लाई ?
मेरे पास समय नहीं है , तुम खुद क्यों नहीं ले आते हो ?
नमिता तुम अपने लिए भी तो चप्पल लाई हो एक जोड़ी और ले आती ।
पैसे खत्म हो गए थे ।
नमिता तुम जो कुछ कमाती हो सारा अपने ऊपर खर्च कर लेती हो ।
सुनते ही नमिता का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया ... उसने चिडकर और ऊँचे स्वर में कहा मेरा पैसा मैं जैसे चाहूं खर्च करूं ।


काश ! माँ की टूटी चप्पल भी देख पाती ?
तुम जो हो देखने के लिए ।
नमिता तुम्हारा कोई फर्ज नहीं बनता क्या माँ के प्रति ?
फर्ज का टोकरा तुम खुद ही लादो अपने सिर पर तुम्हारी माँ है ....मुझे बक्श दो नमिता ने पैरों को जोर से पटका और रसोई में चली गई । नील आये दिन की इस चकचक से बेहद परेशान रहता था ।
नीले ने देखा सामने वाली कुर्सी पर माला फैर रही दादी जी की आँखे नम हो आई ।
नील ,.. ने गिटार उठाया और खिड़की पर बैठ गया ।
लेकिन आज वो अपनी पसंदीदा धुन ठीक से नहीं बजा पा रहा पा रहा था । काश मम्मी पापा समझ पाते कि मैं दौनों को साथ खुश देखना चाहता हूँ । महंगा गिटार गिफट देनें से मेरा जीवन संगीतमय नहीं होगा । जीवन में असली संगीत का मजा तो तभी आयेगा जिस दिन हम एक दूसरे की केयर करना और साथ में बैठकर खुश होना सीख जायेंगे । नील एकाएक उठा और उसने अपनी पाकेटमनी जेब में डाली और बाजार की तरफ निकल गया लोटा तो उसके हाथ में चप्पलों का डिब्बा था जिसे उसने दादी के हाथों मैं रख दिया ।
दादी ने मुस्कुरा कर नील को गले लगा लिया । सातों स्वरों की स्वरलहरियां बज उठी

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दादी की परी
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