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आसमाँ - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

आसमाँ

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विषय,,,,माँ
शीर्षक,,,,," आसमां "

वसुधा का छोटा सा घरौंदा,
सारा दिन पति विकास के साथ नितांत अकेले गुजरता है। बस वृक्षों के झुरमुठ से पंछियों का कलरव ही सुकून देता है। शामें अक्सर आंगन के बगीचे में ही गुजरती है। आज ची ची की चहचहाहट कुछ अधिक ही सुनाई दे रही है। इतने में ही दो चूजे फुदकते हुए आंगन में आए,,
मानो किसी को पुकार रहे हो। यह क्या चिड़ा चिड़ी आगए, अपनी चोंच में भरे दाने चूजों को खिलाने लगे। घोंसले के बिखरे तिनकों को संवारकर फिर चले अपने काम पर। और एक दिन पंख आने पर दोनों चूजे फुर्र से उड़ गए।
वसुधा को याद आने लगे वे दिन जब पंखुरी व अबीर की धमाचौकड़ियों से घर आबाद रहता था।दिन रात पलक झपकते ही बीत जाते थे,,
स्कूल क्लासेस ऊपर से नई नई फरमाइशें ।वह दिन भी आया जब बारी बारी से दोनों बच्चे भी चूजों की तरह अपनी अपनी उड़ान पर चले गए।
परन्तु दूर रहकर भी माँ का दिल है कि मानता ही नहीं।वसुधा अचार पापड़ बड़ी मसाले और त्यौहारी गुजियां
आदि मिठाइयां बनाने में जुटी रहती। विकास टोंकते, "क्यों इतनी माथाफोड़ी करती हो,कौन खाता है इन्हें ? फिर पता नहीं कब आएंगे तुम्हारे बच्चे ? " वसुधा जवाब देती, " आप भी बस,,,घर की बनाई चीज़े मिलती कहाँ है भला।अरे भिजवा देगें किसी के साथ।" विकास चिल्लाते हुए कहते हैं," याद है दिवाली पर हमारी भेजी मिठाइयां दोस्तों में बाँट दी थी और ड्रेसेस तो उन्हें पसंद ही नहीं आई।अब तुम भी भूल जाओ उन्हें , आसमां जो मिल गया है,,माँ को भूल गए हैं। "
वसुधा आह भर कर कहती है, " चलो कोई तो माँ मिली।
अब मैं अपनी सूनी जिंदगी के खाली क्षण अधूरे लेख कविता को दूँगी।"पति बोले,"अब लिया सही फैसला।"
सरला मेहता,,,मौलिक

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दादी की परी
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