कहानीलघुकथा
बाट जोहता डेरा
कस्बे की बस्ती से लगी मुख्य सड़क पर एक छोटा सा बस स्टॉप,,,सुबह से शाम तक छः सात बसों की ही आवाजाही होती है। आज हाट का दिन होने से भीड़ व शोरगुल कुछ ज़्यादा ही है।बूढ़ी अम्मा रोज़मर्रा की तरह हर आने जाने वाली बस का हॉर्न सुन बदहवास दौड़ पड़ती है।
बस के जाने के बाद हांफती हुई अपने अस्थायी डेरे में खटिया पर पड़ जाती है।भूखी प्यासी अम्मा को होटल गुमठी वाले खाना चाय फल वगैरह दे देते हैं। यही अम्मा की ज़िंदगी का नियम बन गया है।
शाम के धुंधलके व शोरगुल में हॉर्न पहचान न पाई।पीछे से आता ट्रेक्टर उसे कुचल कर निकल गया।अंतिम साँसे गिनते वह बुदबुदाई,"मेरा,,कुंवर ,, आए,,तो कहना,,अम्मा,,
गाँव,,,गई है।" ठेलेवाला भरी आँखों से अम्मा की कहानी बयान करने लगा," बेचारी अम्मा का बेटा सेना में था।गए साल ऐसा गया कि लौटा नहीं। अम्मा को क्या पता कि कोई भी बस उसे लेकर नहीं आएगी। कहते हैं सरहद पर उसकी मृत देह भी नहीं मिली
,तब से ही इस माँ ने बस स्टॉप पर ही डेरा डाल लिया।"
सरला मेहता