कहानीहास्य व्यंग्य
मज़ाक की हद
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बिट्टू और उसके पिता जी दोनों बड़े ही मजाकिया किस्म के इंसान थे।
दोनों ठाली बैठे थे तो मन में आया क्यों न कुछ मजाक वजाक ही कर लिया जाय।
शुरूआत करते हुए बिट्टू ने कहा-अच्छा मेरे प्यारे पिता जी ये बताइए कि मज़ाक की हद क्या होती है?
हाजिर जवाब पिता ने कहा-बेटे मैं ने तुम्हें पीछली दीपावली पटाखे छुटाने के लिए पांच सौ रुपये दिया था वो कब लौटाओगे?
बिट्टू बोला पिताजी ये क्या बात हुई दिया एक रूपया नहीं और कहते हो पांच सौ दिया था।
तब उसके पिताजी ने कहा-बेटा यही होती है मजाक की हद।
शर्मिंदा होते बिट्टू बोला मैं तो समझा था आप सचमुच पटाखे छुटाने के लिए पांच सौ रुपये दोगे।
अभी दीपावली आने में पांच दस दिन बाकी थे तो बिट्टू के पिताजी ने अपनी जेब टटोली और कहा-इस दीपावली तो रूपये हैं नहीं अगली दीपावली दे दूंगा।
बिट्टू भी कहां पीछे रहने वाला था बोला मैं इंतजार करूंगा लेकिन पैसे ले कर रहूंगा।
©भुवनेश्वर चौरसिया 'भुनेश'