कहानीसामाजिक
नालायक
पिछले कुछ दिनों से अपने शानदार केबिन में भी कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है|
कुछ चिर परिचित सी महक आ रही है| आज अपने आप को रोक नहीं पाया सीढ़ियां उतरकर नीचे आया , तो देखा तरुण के टिफिन से उड़ती हुई महक मुझे अपनी ओर खींच रही थी|
"अरे सर आप !कुछ चाहिए था, लंच का समय हो गया था तो मैं खाना खा रहा था|"
मेरा ध्यान उसकी बातों में कम उसके टिफिन से उड़ती हुई महक पर ज्यादा था|
"अरे नहीं कुछ नहीं चाहिए मैं तो बस ऐसे ही ,अच्छा तो तुम खाना बनाने लग गए हो|"
एक प्रश्न के जरिए मैंने उस महक को टटोलने की कोशिश की|
"अरे सर यह तो हमारे पास ही एक आंटी रहती है उनके पति को कैंसर है, तो उनके इलाज के लिए वह टिफिन सेंटर चलाती है ,बस वही से खाना लाता हूं |एक नालायक बेटा है उनका जिसने उन्हें दर-दर की ठोकर खाने के लिए छोड़ दिया है|"
अब महक ने मेरा पीछा छोड़ दिया था 'नालायक बेटा' यह शब्द मेरे पीछे पड़ गए थे|
टीनू सुमन
कोटा राजस्थान