Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
अहमियत रिश्तों की डोर - Radha Gupta Patwari 'Vrindavani: (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेरणादायक

अहमियत रिश्तों की डोर

  • 199
  • 18 Min Read

1.अहमियत-रिश्तों की डोर



"रिद्धिमा रिद्धिमा"उठो यार आज तुम्हारे रैंपवॉक का टाइम होने वाला है। उसकी सहेली शेफाली ने पानी पीते हुए रिद्धिमा से कहा।रिद्धिमा झुमके पहन रही थी।शेफाली यह कहकर हँस पड़ी और अपनी ड्रेसिंग रूम में चली गई।बड़बड़ाते हुए रिद्धिमा सैंडल पहनकर थोड़ा सा रैंप वॉक करने की कोशिश करने लगी।रैंपवॉक करने में लगभग 10-15 मिनट का वक्त बाकी था। उसको फेमस फैशन डिजाइनर राजीव सिंघानिया के कास्ट्यूम मेंं रैंप वाक करनी थी।

रिद्धिमा देखने में बहुत सुंदर थी या यूँ कहैं ब्यूटी बिद ब्रेन का काम्बिनेशन थी। रिद्धिमा ने ब्लैक कलर का नेट गाउन पहन रखा था।उसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। पैसा,ग्लैमर्स,नाम,घर,प्रतिमा सब था,नहीं था तो बस टाइम।ना खाने की सुध ना प्यास ।वह बहुत ही महत्वकांक्षी महिला थी।


रिद्धिमा कैटवॉक की प्रैक्टिस कर रही थी तभी उसके फोन मे घंटी बजती है, फोन उसकी मां का होता है वह फोन का नंबर कट कर देती है; घंटी फिर बजती है फिर कट कर देती है,तीसरी बार जब घंटी बजती है रिद्धिमा झुंझलाकर फोन उठाकर कहती है-"बोलो मां,आपको क्या प्रॉब्लम है,क्यों बार-बार परेशान कर रही है?"उधर फोन पर इसकी मां कहती है-"बिटिया,खाना काहे नहीं ले गयी,भूखी हुइयो." रिद्धिमा खीज़ के बोली आपको सिर्फ खाना,खाना और सिर्फ खाना दिखता है,अगेन प्लीज डोंट डिस्टर्ब मी; इट्स माए हम्बल रिक्वेस्ट।"इतना कहकर रिद्धिमा फोन कट कर देती है।

रिद्धिमा अपने मां बाप की इकलौती बेटी थी।उसके पिता की उन्नाव में एक छोटी सी दुकान होती थी और माँ एक घरेलू महिला थींं। दोनों बडे़ जतन से अपनी बेटी का लालन-पालन करके उसे पढ़ाते -लिखाते हैं। बाहरवीं पास करते ही वह अपने सपने को पूरा करने के लिए दिल्ली आ गई,यहां आते ही वह एक उभरती मॉडल बन गई,पर इन ऊचाईयों के सामने उसको माँ-बाप, उसका कस्बा सब बौने नजर आने लगे।उसके माँ-बाप ज्यादा पढे़ लिखे नहीं थे इसलिए उसको शर्म आती थी।दिवाली के त्यौहार पर वह दिल्ली आए थे।

रिद्धिमा जब शो खत्म करके अपनी सहेली शैफाली के साथ लौटती है,दोनों सहेलियाँ आपस में बातों में मगशूल होती हैं तभी उनकी कार डिवाइडर से टकरा जाती है और रिद्धिमा का काफी खून बह जाता है।आननफानन में दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।यह खबर सुनकर रिद्धिमा के माँ-बाप फौरन भागे आते हैं।

"डॉक्टर साब मेरी बिटिया को बचा लेओ,मेरी बिटिया ठीक तो हुइ जहये ना"-रिद्धि के पिता हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा के बोलते हैं।डॉक्टर चिंतित होकर कहता है-"पेशेंट का काफी खून बह चुका है,हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं बाकी ईश्वर से प्रार्थना कीजिए।"

रिद्धिमा का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव होता है और अस्पताल में उस दिन उसका ब्लड ग्रुप का उपलब्ध नहीं होता है।डॉक्टर उसके मां-बाप से कहते हैं-"आपमेंं से किसी का भी ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव है तो प्लीज अपने बच्ची को बचा लीजिए।"उसकी मां बिना देरी किए कहती है-"डॉक्टर साब,हमाओ खून लै लो,पर हमाई बिटिया को केसोऊँ बचाए लेओ।"

मां रिद्धिमा को खून दे देती है। जब रिद्धिमा को होश आता है तो वह देखती है उसके माता-पिता उसका हाथ पकड़े उसके बगल में बैठकर रोते हुए होते कहते हैं-"मेरी बिटिया को कछु ना हुइए,वो ठीक हुइ जइए,ईश्वर हमाए साथ इत्तो बुरो ना कर सकत।"

रिद्धिमा अपनी गलती का एहसास होता है वह क्षमा मांगते और रोते हुए कहती हैं-"माँ-पापा,जिस झूठी दुनिया को,जिस दिखावे को मैं अपनी दुनिया मानती रही;जिसको इतना तवज्जो देती रही;वही मेरे काम नहीं आयी और आप लोग जिन्होंने मेरी खुशी के लिए क्या-क्या नहीं किया, आपने यहाँ तक पहुंचाया और मैंने बदले में आपको क्या दिया?"रिद्धिमा गहरी सांस लेते हुए बोली-"मेरी गलती को माँफ कर दो और अब आप लोग मेरे साथ रहेंगे।"

दोस्तों यह कहानी है आज के की आज के समाज की है।आज हम अपने माता पिता को कुछ नहीं समझते हैं जबकि उन्होंने हमारे लिए कितने कष्ट सहे होते हैं,हमको लगता है कि उन्होंने हमारे लिए किया ही क्या है?जबकि हमारी जिंदगी में हम को सफल बनाने का ज्यादातर हिस्सा उनका होता है।

धन्यवाद

1602353126.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG