कवितागजल
है एक अदबी लड़की
जो मेरे ख़्वाब में आती है,
ख़ुद भी अदब पढ़ती है
दुसरो को भी सिखाती है,
अजब जज़्बे, अजब तेवर है
है तो एक नाज़ुक कली सी,
लेकिन कभी बनके दरख़्त छाँव देती है
तो कभी आँधीयों से टकराती है,
नज़ाकत, मोहब्बत, शरारत
यह सब बाख़ूख निभाती है,
वह मेरे शर्ट के बटन लगाती है
अपनी ज़ूल्फ़ें, मुझसे खुलवाती है,
ज़रूरत पे काम लेती है लबों से
वह कत्थई आँखों से सब कह जाती है,
है एक अदबी लड़की
जो बड़े अदब से इश्क़ निभाती है,
ज़बीं उनकी संगेमरमर के मानिंद
आंँखें उनकी अंज़ाँ देती है,
है एक अदबी लड़की
जो मुझे इबादत की सदा देती है,
मैं अपने वहम में था के
आँखों से शरमाया जाता है,
पर वह अदबी,अलबेली लड़की
अंग-अंग से शरमाती है,
वह तस्वीर-ए-मुस्तक़बिल की
कुछ ऐसे भी तस्वीर बनाती है,
ख़ुद किताबों में उलझ कर
वह मुझसे ग़ज़लें लिखवाती है,
वह सही गलत मुझे सब बताती है
नमाज़-ए-फ़ज्र के लिए भी जगाती है,
है एक अदबी लड़की
जो बड़े अदब से इश्क़ निभाती है।।