कवितागजल
जाने क्यों ऐसा लगा जैसे तूने आवाज दी है
मेरी यादों की धूप आज दिल मे सुलगा ली है
माजी के महकते लम्हो की कसम थी तुम्हे
तुमने क्यों तस्वीर मेरी कमरे में लगा ली है
आंधियों का क्या भरोसा कब चली आएं वो
बेहतर है कश्ती तुमने साहिंल पे लगा ली है
मैं तन्हा चली जा रही थी मंजिल की तरफ
मेरी राहों से मगर रोशनी तुमने हटा ली है
दिल के रिश्ते कभी टूटते नही सुना तो ये था
बर्फ अब तुमने रिश्तों में अपने जमा ली है