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मेरे जज्बात-2 - राज खण्डेलवाल (Sahitya Arpan)

कवितागजल

मेरे जज्बात-2

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  • 3 Min Read

जाने क्यों ऐसा लगा जैसे तूने आवाज दी है
मेरी यादों की धूप आज दिल मे सुलगा ली है

माजी के महकते लम्हो की कसम थी तुम्हे
तुमने क्यों तस्वीर मेरी कमरे में लगा ली है

आंधियों का क्या भरोसा कब चली आएं वो
बेहतर है कश्ती तुमने साहिंल पे लगा ली है

मैं तन्हा चली जा रही थी मंजिल की तरफ
मेरी राहों से मगर रोशनी तुमने हटा ली है

दिल के रिश्ते कभी टूटते नही सुना तो ये था
बर्फ अब तुमने रिश्तों में अपने जमा ली है

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