Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
मुफ़लिसी से ही रहती है कुर्बत ग़रीब की - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मुफ़लिसी से ही रहती है कुर्बत ग़रीब की

  • 4
  • 2 Min Read

तंगहाली में ज़िंदगी बन गई है तुर्बत ग़रीब की
हर चीज़ में आड़े आ जाती है ग़ुर्बत ग़रीब की

साथी संगी रिश्ते नाते हबीब करीब कोई नहीं
इक मुफ़लिसी से ही रहती है कुर्बत ग़रीब की

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" بشر
शब्दार्थ:-
तुर्बत -क़ब्र, ग़ुर्बत -ग़रीबी, हबीब -मित्र,
मुफ़लिसी - ग़रीबी, कुर्बत - घनिष्ठता ।

1663935559293_1732842016.jpg
user-image
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg