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मुरझाए जिस्म - Yogi Rudra (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मुरझाए जिस्म

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कुछ जिस्म कभी यूं मुरझा से जाते हैं
जिंदा रहकर लेते है सांसे
पर अंदर मर से जाते हैं
टटोलते है कभी भीड़ में वजूद अपना
किसी की मुस्कुराहट में खुद को पातें है
कुछ जिस्म कभी यूं....
भटकते है दो लफ्ज़ प्यार की खातिर
कभी किसी ठौर ठहर से जाते है
समझे कोई मर्म इसमें बसी रूह का
कहीं मार कर ठोकर ठुकरा दिए जाते हैं
कुछ जिस्म कभी यूं....

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