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कवितानज़्म
ज़माना अनजान हमारे लिए हम अनजान जमाने के लिए ! आते हैं सब इस ज़माने में जान - पहचान बनाने केलिए ! जमाने के रंगढंग जानेही नहीं लग गए अपने रंग दिखाने में! जमाने को पहचान पाए नहीं मर गए पहचान बनाने केलिए! © डॉ. एन. आर. कस्वाँ 'बशर' bashar بشر