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नये नये बाबाजी - Ashok Nehra (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

नये नये बाबाजी

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कुछ दिन पहले की ही बात है की मैं रात को लगभग सवा 10 बजे किसी यात्रा हेतु स्टेशन पहुंचा तो थोड़ी ही देर में मुझे एक युवा जिसके माथे पर तिलक लगाया हुआ और सिर पर चोटी रखी हुई ने पूछा की भाईसाहब ट्रेन आने में कितना समय लगेगा तो मैंने बताया 10 मिनट उसके बाद उन्होंने मेरा परिचय पूछा | फिर मैंने भी उनका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया की मैं एक पण्डित और ज्योतिषी हूं और कर्मकाण्डीय क्रियाएं करवाता हूं।उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शिक्षा दीक्षा भी उसी शहर में रहकर पूरी की जहां अभी मैं रह रहा हूं। इतनी देर हुई नही की ट्रेन आ गयी हम दोनों ही सामान्य श्रेणी में बैठ गये | जैसे ही ट्रेन चले लगी तो उन्होंने अपनी जेब से तम्बाकू की पुड़िया निकाली और खाने लगे | मैंने उन्हें पूछा की आप तो पंडित हो न तो ये तम्बाकू क्यों खा रहे हो | तो उन्होंने जवाब दिया कि आपने अभी तक खाया नही होगा इसलिए आपको इसको खाने के आंनद का पता नही है इसको खाने से दिमाग सही रहता है | उसके बाद मैं कानों में इअरफोन डालके गाने सुनने लग गया | थोड़ी देर बाद मैंने उत्सुकतावश पूछ लिया कि आप शनि उतारने के लिए कितने रुपये लेते हो तो उन्होंने बताया कि हम लोग तो व्यक्ति की हेसियत देखकर पैसे लेते है। जजमान को अधिकतम राशि बताते है फिर अगर उसके पास है तो पूरे ही दे देता है नही तो थोड़े कम दे देता है | इस तरह के कर्मकाण्ड वाले बाबाओं और पाखंडियों से बचकर रहना भी मुश्किल है | ये लोग आम जनता से दान के रूप में पैसे लेके नशा खरीदते है और अपनी अय्याशी करते है |

परिचय-
अशोक नेहरा
नेहरों का तला,सेड़वा
बाड़मेर,राजस्थान
आप डी.एल.एड के विद्यार्थी है। निष्काम फाउंडेशन और स्वामी केशवानन्द फाउंडेशन के माध्यम से समाजसेवा का कार्य भी करते है |

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दादी की परी
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