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पहल्यां ही बता देंदी - Sandeep Chobara (Sahitya Arpan)

कविताहरियाणवी रागिनीअतुकांत कविता

पहल्यां ही बता देंदी

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पहल्यां ही बता देंदी


बैरण! तू मनै पहल्यां ही बता देंदी
जिब बात्याँ का सिलसिला शुरू करया था
क्यूँ इतणा लगाव बढ़ाया तनै
तनै जाण बूझ कै नै
मेरै गैल यू छल करया सै।

मैं तै ठीक था अपणी जिंदगी म्है
काट रया था अपणे दिनां नै
फेर क्यूँ तनै इतणी बात बढ़ाई
तनै पहल्यां ए सोचणा था यू
ईब चाहवै सै कि मैं छोड़ दयूं
ना पागल! तू ईब कोन्या छोड़ सकदी।

इसा कौण कर सकै सै जो
यारी ला कै तोड़ दे।
अर ला कै तोड़ना बी
इतणा आसान कोनी होण्दा पागल!
तू जाणे तो सै!
पर जाणना नी चाहन्दी।

मनै तेरी बात्याँ तै घणा दुःख होवै सै
सोचूँ सूं!जिब किमै था ही नी अपणे बीच
फेर तनै क्यूँ इतणी चाह बढ़ाई
तू चाहन्दी तै यू ना होण्दा
मैं बच ज्यांदा दुःखी होण तै।

पागल! तू चाहवै तै रह सकूँ सूं
फेर उन्हीं हालातां तै लड़कै
जिस तरियां जीण लाग रया था
मैं लड़ लेन्दा सारी मुश्किलां तै
पागल!अपणी जिंदगी म्है।।

संदीप चौबारा
फतेहाबाद
२२/०७/२०२०

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