कवितालयबद्ध कविता
पिता की दहलीज़ लाँघकर
कन्या जब घर आती है।
खिलखिलखती हँसी,प्यार,शुभ,
श्री,लक्ष्मी,रौनकें हजार लाती है।।
माँ की दहलीज़ पारकर
बेटी जब विदा होती है।
ढ़ेर सारा आशीष, स्नेह
सुखमय जीवन की दुआ लेती है।।
पति की दहलीज़ पारकर
पत्नी जब घर आती है।
नई आशाऐं, उमंग, समृद्धि
खुशियों भरा जीवन साथ लाती है।।
पति की दहलीज़ लाँघकर
पत्नी जब घर छोड़ती है।
दुख,निराशा,हताशा,श्रीहीन
दारिद्रय सभी यहीं छोड़ जाती है।।
पुत्र की दहलीज़ छोड़कर
माँ जब संसार छोड़ती है।
ढ़ेर सारा आशीर्वाद,स्नेह,दुलार
अपना नाम,वंश यहीं छोड़ जाती है।
धन्यवाद
राधा गुप्ता 'वृन्दावनी'