Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
हयात है कि फ़िराक़-ए-यार की इक सूनी सी लम्बी शाम है मुद्दतों से न क़ासिद है न खत है न हबीब का कोई पयाम है डॉ.एन.आर. कस्वाँ 'बशर'