कविताअतुकांत कविता
शिव पार्वती महिमा
तन पे भस्म लपेटे है वो, सावन उनकी महिमा गाता है
माँ पार्वती के शिव है वो, जो जन में भोले कहलाता है
अनेकों रूप धरा पे उनके , उन्होंने सबका उद्धार किया
ज्योर्तिर्लिंग बनके प्रकट हुए वो, जब देवतायो ने मन से याद किया
माता सती जब अपने घर पहुँची ,तब दक्ष ने भोले का अपमान किया
जलती हवन की अग्नि में, माता ने तब आत्मदाह किया
सह ना सके ये पीर विरह की, पूरे ब्रह्मांड में सती को लेकर भोले भागे थे
धरती ,अम्बर ,भूमंडल तक सब , शिव के रुद्र रूप से काँपे थे
किया उपाय विष्णु ने तब सुदर्शन चक्र चलाया था
छिन्न भिन्न कर सती के अंग को, तब उन्हें शक्तिपीठ बनाया था
रहे विराजमान कैलाश पे दोनों संसार की सुविधा त्यागी है
माता पिता कहलाते है सबके , रहते जग के हितकारी है
जो अनेकों रूपो में पूजी जाती वो गौरा, चण्डी, महा काली है
और जो रावण को भी वरदान दे दे , वो हमारे भोले भंडारी है
लिए जन्म अनेकों सती ने, तब गौरी का जन्म पाया था
हर जन्म में हुई शिव की ही वो , यही वरदान उन्होंने पाया था
त्याग भी शिव का था बहुत , जो माता पार्वती के वो वर बने
शिव पार्वती की महिमा से ही ये पूरा संसार चले