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राष्ट्रपिता - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

राष्ट्रपिता

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आलेख-राष्ट्रपिता पर

सदी के महानायक बापू पर लिखना यानी सूरज को दीया दिखाना। सत्य व अहिंसा का शस्त्र लिए वे जुटे रहे,जोड़ते रहे अपने साथ कइयों को। जी,सही है एक सदी लगी मक़सद पूरा करने में। किन्तु
वे बिना हारे लगे रहे।बस,लगे रहो मुन्नाभाई,देर सबेर ही सही मंजिल अवश्य मिलती है। हाँ, हमारे साधन अगर
न्यायोचित हैं तो साधना पूर्ण होगी ही।
उनके तीन बंदर कहते हैं-बुरा न सुनो,न देखो और न बोलो।
ठीक है बुराई से पल्ला झाड़ लो।किन्तु बुराई को अच्छाई में बदलने में भी क्या बुराई है। अतः जागरूक होना भी जरूरी है। बापू ने बंदरों पर कहा था। हम इंसान हैं तो बुरा सोचे भी नहीं। बापू ने
पहनावे की सादगी के साथ
श्रेष्ठ सोच पर भी जोर दिया था।
गांधी जी ने कहा था कि कोई आपके एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा गाल भी सामने
कर दो।लेकिन उन्होंने यह भी
कहा था कि अन्याय सहना भी अन्याय है। विदेश में जब भी रंगभेद अथवा ट्रेन बस आदि में अपमान हुआ,उन्होंने मुँह तोड़ जवाब भी दिया।
बापू के सिद्धान्त आज भी समसामयिक हैं-शिक्षा ,
छुआछूत समस्या,स्वच्छता,
सादगी आदि। हाँ, वे कहते थे
-एक बेटी की शिक्षा पूरे कुनबे
को शिक्षित करती है।
आज बापू भारत के ही नहीं वरन विश्व के नक्शे पर भी
अमर हैं।
सरला मेहता

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