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कवितानज़्म
तन सुंदर हो कि ना हो अल्फ़ाज़ अपने ख़ूबसूरत रखिए मुंतज़िर हो शुभ घड़ी के तो इसी क्षण शुभ मुहूर्त रखिए ख़ूबसूरती ज़िस्मकी भुलादी जातीहै लफ़्ज़ याद रहते हैं गोया कि काबू अपनी जुबाँ पर "बशर" हर -सूरत रखिए @"बशर"