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कड़वा सच - Alok Mishra (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

कड़वा सच

  • 54
  • 5 Min Read

*** कड़वा सच *****


सुबह हाँथ अख़बार उठाया, रह गया देख के दंग l
इक बुजुर्ग दंप्पत्ति ने कर लिया, इहलीला का अंत l
कैसी हम संतान हैं, जो बिमुख हुये माँ बाप से l
जब उन्हें जरुरत पड़ी हमारी, छोड दिया हालात पे l
खून पसीने से सींच कर, की जो बगिआ तैयार l
वक्त पड़े जो काम न आवै, सब किया धरा बेकार l
दरक गयी नींव संस्कार की, जो मातु पिता ने डाली थी l
ऐसी होगी संतान हमारी, उम्मीद न ऐसी पाली थी l
वृद्ध हुये माँ बाप को हमसे, नहीं चाहिये चाँदी सोना l
उन्हें चाहिए साथ हमारा, और घर का खाली कोना l
इतना भी अगर कर पाये नहीं, तो धरती के हम भार हैं l
संतान के होते तकलीफ सहें वो, तो बारम्बार धिक्कार हैं l
हम प्रायः ये भूल ही जाते, अपने पीछे एक हमारी पीढ़ी हैं l
ऊपर नीचे जाने की, विधि की बनाई सीढ़ी हैं l
आज हम जैसा कर्म करेंगे, कल उसका फ़ल तो आएगा l
इसे समझने में जितनी देर करेंगे, वक़्त फिसलता जायेगा l

( आलोक मिश्र )

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